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The Science of getting Rich|| D.WATTLES WALLANCE AND WALLANCE D. WATTLES

इंट्रोडक्शन (Introduction) क्या आप अमीर होने का ख्वाब देखते है? क्या आप एक अच्छी लाइफ जीना चाहते हो? क्या आप लाइफ में बेस्ट बनना चाहते हो? तो इस बुक में आप सक्सेस, हैप्पीनेस और अमीर बनने का सीक्रेट पढेंगे. आप चाहे जिस बैकग्राउंड से बिलोंग करते हो, फिर भी आप अमीर हो सकते हो. आपके सपने सच हो सकते है. क्योंकि ये बुक आपको अमीर बनने का एक्जेक्ट तरीका बताएगी. बस आपको वो टेक्नीक्स और गाइडलाइन्स फोलो करनी होगी जो इस बुक में दी गयी है. जो लाइफ आप जीना चाहते हो, आपसे ज्यादा दूर नहीं है. पर इसके लिए आपको एक सर्टेन वे में सोचना होगा. जो आपके पास है, आपको दूसरो के प्रति थैंकफुल होना चाहिए. आपकी कोशिश यही हो कि आप दूसरो के काम आ सके. आप इस बुक में पढ़ी हुई बातो को अपनी लाइफ में अप्लाई करोगे तो आपको कोई भी अमीर होने से नहीं रोक पायेगा.    द राईट टू बी रिच (The Right to be Rich) क्या अमीर होने की चाहत रखना गलत है? ऐसा कौन है जो एक आराम की लाइफ नहीं चाहता? क्या ये सपना देखना गलत है? नहीं, बिलकुल नहीं. अमीरी का मतलब सिर्फ पैसे से नहीं है. बल्कि इसका मतलब है कि आपके पास ऐसे टूल्स होने चाहिए जो

The power of Habit ||

भूमिका
आज सुबह जब आप नींद से जगे, आपने सबसे पहले क्या किया? लपक कर शावर के नीचे चले गए, ईमेल चेक किया, या किचन काउंटर से एक डोनट उठा लिया? आपने नहाने से पहले दाँतों को ब्रश किया या बाद में?  काम पर किस रास्ते से ड्राइव करते हुए गए? जब आप घर लौटे, तब क्या आपने स्नीकर्स पहना और दौड़ने निकल पड़े, या अपने लिए एक ड्रिंक ग्लास में डाला और टीवी के सामने डिनर के लिए बैठ गए?

विलियम जेम्स ने 1892 में लिखा था, “हमारा पूरा जीवन, जब तक यह एक निश्चित आकार में है, आदतों का पुंज है ।” हर दिन किए गए चुनाव हमें सोच-समझ कर लिए गए निर्णयों के परिणाम लग सकते हैं, पर वे हैं नहीं। वे आदतें हैं। और हालांकि हर आदत का अपने-आप में कुछ मायने नहीं होता, समय के साथ, हम किस खाने का ऑर्डर देते हैं, बचत करते हैं या खर्च करते हैं, कितने अक्सर कसरत करते हैं, और जिस तरह हम आपनी सोचों और काम की रूटीन को संवारते हैं – इनका हमारे स्वास्थ्य, प्रोडक्टिविटी, फायनैंशियल सिक्योरिटी और प्रसन्नता पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। 2006 में प्रकाशित किए गए ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर के पेपर ने पाया कि लोगों द्वारा किए गए 40 प्रतिशत कार्य वास्तव में निर्णय नहीं थे, बल्कि आदतें थीं।
 
अरस्तू से ले कर ओपरा तक अनगिनत औरों की तरह जेम्स ने अपना अधिकांश जीवन यह समझने में बिता दिया कि आखिर आदतें होतीं क्यों हैं। परंतु केवल विगत दो दशकों में वैज्ञानिकों और मार्केटरों और ने वास्तव में यह समझना शुरु किया है कि आदतें कैसे काम करती हैं –– और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण –– कि यह बदलतीं कैसे हैं। किसी समय-बिंदु पर, हम सभी ने सोच-समझ कर निश्चय किया था कि कितना खाना खाएँ या जब हम ऑफिस पहुँचें तो फोकस कैसे करें, कितनी बार ड्रिंक लें और दौड़ने कब जाएँ। तब हमने चुनाव करना बंद कर दिया, और व्यवहार सहज हो गया। यह हमारी न्यूरोलॉजी का स्वाभाविक परिणाम है। और इसे समझते हुए कि यह कैसे होता है, आप जिसे भी पसंद करते हैं उन पैटर्न्स को फिर से बना सकते हैं।
 
आदत का फंदा: आदतें कैसे काम करती हैं
जिस बिल्डिंग में मैसेच्यूसेट्स इंस्टिच्यूट ऑफ टेकनॉलजी (MIT) के ब्रेन और कॉग्निटिव सायंसेज का विभाग है उसमें लैबोरेटरीज भी हैं जो यूँ ही ताकने वालों को सर्जिकल थिएटर्स के गुड़ियाघर संस्करण दिखाई दे सकते हैं। उसमें रोबोटिक बाहों से लगी, चौथाई इंच से भी छोटे छोटे-छोटे स्कैल्पेल्स, ड्रिल्स, नन्हीं आरियाँ हैं। ऑपरेटिंग टेबल्स भी छोटे-छोटे हैं जैसे बच्चों की साइज के सर्जन्स के लिए बनाए गए हों। इन लैबोरेटरीज़ के अंदर बेहोश किए गए चूहों की खोपड़ियाँ काटते हैं, और उनके अंदर नन्हें सेंसर्स इम्पालांट करते हैं जो उनके दिमागों के अंदर छोटे से छोटे बदलावों को रिकॉर्ड करती हैं। यह लैबोरेटरीज़ आदत-बनाने के विज्ञान में नीरव क्रांति का एपीसेंटर बन गई हैं, और उनमें किए जाने वाले प्रयोग इसकी व्याख्या करते हैं कि हम दैनिक जीवन के लिए आवश्यक आचरणों का विकास कैसे करते हैं।
 
लैबोरेटरीज़ के चूहे हमारे दिमागों में चलने वाली उन जटिलताओं पर प्रकाश डालते हैं जब हम दाँतों को ब्रश करना या ड्राइवे सा कार बैक करते हुए कार निकालने जैसा कोई साधारण काम करते हैं। खोपड़ी के केंद्र की ओर गॉल्फ की गेंद की साइज का टिश्यू पिंड होता है जिनके समान पिंड आप मछलियों, सरीसृपों या स्तनपाइयों के सिरों में भी पा सकते। यह अंडाकार कोशिका-पुंज, बेसल गैंग्लिया है जिसे वैज्ञानिक वर्षों तक अच्छी तरह से समझ नहीं पाए थे, केवल उन संदेहों के सिवा कि पार्किंसंस जैसे रोगों में इसकी कोई भूमिका होती है। 1990 के दशक के शुरू में, MIT के शोधकर्ताओं ने सोचना शुरू किया बेसल गैंग्लिया आदतों के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है। उन्होंने लक्ष्य किया कि घायल बेसल गैग्लिया वाले प्राणियों को भूल-भुलैया से होकर दौड़ने तथा फूड कंटेनर्स को खोलना याद रखने में समस्याएँ हो रही हैं। उन्होंने नई माइक्रो टेकनॉलजीज का उपयोग करते हुए प्रयोग करने का निर्णय किया जिनसे वे उन सूक्ष्म विवरणों का निरीक्षण कर सकते थे जो दर्जनों रूटीन कार्य करते समय चूहों के दिमाग में चल रहे होते हैं।
 
अंत में, प्रत्येक प्राणी को एक T आकार की भूलभुलैया में रखा गया जिसके एक सिरे पर चॉकलेट रखी गई थी। भूलभुलैया का ढांचा इस तरह बनाया गया था जिससे चूहे का स्थान एक पार्टीशन के पीछे था जो एक जोरदार क्लिक की आवाज किए जाने पर खुलता था। पहले-पहल जब वह क्लिक की आवाज सुनता और पार्टीशन को गायब होते देखता तब यह साधारणतः केंद्रीय गलियारे में, कोनों को सूंघता और दीवारों को नचोटता हुआ आगे-पीछे घूमता-फिरता था। लगता था कि उसे चॉकलेट की सुगंध मिल रही थी पर वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उसे कैसे ढूँढ़ निकाले। जब यह T के शीर्ष पर पहुँचता, तब यह चॉकलेट से दूर, दाहिने मुड़ता, और तब कभी-कभी, बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के, रुक कर, बाईँ ओर निकल जाता। अंत में, अधिकांश प्राणियों को इनाम मिल जाता था। परंतु उनके भटकाव में कोई प्रत्यक्ष पैटर्न नहीं था। लगता था कि हर चूहा फुर्सत से, बिना सोचे-विचारे टहल रहा था। फिर भी, चूहों के सिरों की जाँच एक अलग कहानी कहती थी। जब प्रत्येक प्राणी भूल-भुलैया से में भटक रहा था, उसका दिमाग –– और विशेष रूप से उसका बेसल गैंग्लिया –– जल्दबाजी से काम कर रहा था।
 
हर बार जब कोई चूहा हवा सूंघता या दीवार नचोटता, इसका दिमाग ऐक्टिविटी से विस्फोट करता, मानो वह प्रत्येक गंध, दृश्य और आवाज की ऐनैलिसिस कर रहा हो। अपने पूरे भटकाव के दौरान चूहा सूचना प्रोसेसिंग कर रहा था। सैकड़ों बार एक ही रास्ते चलते हुए इसके दिमाग की ऐक्टिविटी कैसी बदलती थी, इसका निरीक्षण करते हुए, वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को बार-बार दोहराया। चूहों ने के सूंघना और गलत मोड़ लेना बंद कर दिया। धीरे-धीरे बदलावों की एक सीरिज उभर आई। इसके बदले वे भूल-भुलैया से होकर तेजी से, और भी तेजी से निकलने लगे। और उनके दिमागों में कुछ अनएक्सपेक्टेड हो गया : जैसे-जैसे हर चूहा भूल-भुलैया से रास्ता ढूँढ़ कर निकलना सीखता गया, उसकी मानसिक ऐक्टिविटी कम होती गई। जैसे-जैसे रास्ता अधिक से अधिक सहज होता गया, हर चूहे ने कम -- और भी कम सोचना शुरू कर दिया। ऐसा लगता था, जैसे पहले कई बार जब चूहे ने भूल-भुलैये में रास्ते की तलाश की, तब इसके दिमाग को नई सूचना को समझने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा कर काम करना पड़ता।
 
परंतु कुछ दिनों तक उसी एक रास्ते पर चलते रहने के बाद, चूहे को दिवाल खसोटने या हवा सूंघने की अब और आवश्यकता नहीं रह गई, और इसलिए खसोटने और सूंघने से संबंधित दिमागी ऐक्टिविटी समाप्त हो गई। इसे मुड़ने के लिए दिशा चुनने की दरकार नहीं रह गई, इसलिए दिमाग के निर्णय लेने वाले केंद्र शांत हो गए। चूहे ने भूलभुलैया से होकर दौड़ कर निकल जाना इस हद तक अपना लिया था कि इसे सोचने की कोई भी आवश्यकता नहीं रह गई थी। परंतु दिमागी निरीक्षणों ने सूचित किया कि अपनाना बेसल गैंग्लिया पर निर्भर करता था। जैसे-जैसे चूहा अपनी दौड़ने की गति बढाता गया, लगता था कि यह नन्हे, न्यूरोलॉजिकल ढांचे हावी हो गए हैं और दिमाग कम से कम काम कर रहा है। पैटर्न्स याद रखने तथा उन पर काम करने के केंद्र में बेसल गैग्लिया था। दूसरे शब्दों में, जब बाकी दिमाग सोने चला जाता, तब बेसल गैग्लिया आदतों को संग्रह करता।
  ‘चंकिंग’ की सहज रूटीन
यह प्रौसेस –– जिसमें दिमाग ऐक्टिविटीज की किसी चेन को एक सहज रूटीन में बदल लेता है –– “चकिंग,” के रूप में जाना जाता है और इसकी जड़ें इसमें है कि आदतें कैसे बनती हैं। आचरण चंक्स –– यदि सैकड़ों नहीं –– तो दर्जनों हैं जिनपर हम रोज निर्भर करते हैं। इनमें कुछ सरल हैं : मुँह में लगाने के पहले आप ब्रश पर सहजता के साथ टूथपेस्ट डाल लेते हैं। ऐसे ही कुछ, जैसे कपड़ा पहनना हुआ या बच्चों के लिए लंच बनाना, अधिक जटिल हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि आदतें उभर आती हैं क्योंकि दिमाग प्रयास से बचने के लिए लगातार उपाय ढूँढ़ता है। यदि इसे अपने-आप पर छोड़ दिया जाए, तब दिमाग लगभग किसी भी रूटीन को आदत में ढालने की कोशिश करेगा, क्योंकि आदतें हमारे दिमागों को अधिक अक्सर भटकने की परमिशन देती हैं। प्रयास से बचने की प्रवृत्ति बहुत फायदेमंद है।
 
एक एफिशिएंट दिमाग हमें टहलने, तथा क्या खाएँ इसे चुनने जैसे बेसिक आचरणों के बारे में लगातार सोचना बंद करने की परमिशन देता है, जिससे हम भालों, सिंचाई सिस्टम्स और अंत में हवाई जहाज या विडियो गेम्स आविष्कार करने में मानसिक ऊर्जा समर्पित कर सकें। हमारे दिमागों में होने वाली यह प्रक्रिया एक तीन-ठहरावों का फंदा है। पहला एक क्यू (cue), एक ट्रिगर है जो आपके दिमाग को सहज मोड में जाने के लिए कहता है और यह कि किस आदत का उपयोग करें। तब यह रूटीन है, जो एक शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक हो सकती है। अंत में, एक रिवार्ड (पारितोषिक) है, जो आपके दिमाग को यह समझने में सहायता करता है कि भविष्य के लिए कौन सा फंदा याद रखे जाने लायक है। समय के साथ, यह फंदा –– क्यू, रूटीन, रिवार्ड ; क्यू, रूटीन, रिवार्ड  –– अधिक सहज हो जाता है। क्यू और रिवार्ड आपस में गुँथ जाते हैं जब तक प्रत्याशा और ललक (क्रेविंग) का एक शक्तिशाली भाव उभर कर नहीं आ जाता।
 
अंत में, एक आदत जन्म लेती है। आदतें कोई विधाता का विधान नहीं हैं। आदतों की अनदेखी की जा सकती है, बदला जा सकता है, या पलटा जा सकता है। परंतु वह कारण जिसके लिए आदत के फंदे का आविष्कार इतना महत्वपूर्ण है, यह है कि यह एक बेसिक सच्चाई से पर्दा हटाती है : जब कोई आदत उभरती है, तब दिमाग निर्णय लेने में भाग लेना पूरी तरह से बंद कर देता है। यह उतना परिश्रम करना बंद कर देता है, या अपने फोकस को दूसरे कार्यों पर मोड़ देता है। इसलिए जब तक आप जानबूझ कर किसी आदत से लड़ाई नहीं करते –– जब तक आप नई रूटीनें नहीं ढूँढ़ लोते –– यह पैटर्न सहजता के साथ खुलेगा। MIT के एक वैज्ञानिक ऐन ग्रेबियल के अनुसार, जो बेसल गैग्लिया के कई प्रयोगों का निरीक्षण कर रही थी,  “आदतें वास्तव में कभी भी गायब नहीं होतीं। वे हमारी दिमागी ढांचे में एनकोडेड हो जाती हैं ... समस्या यह है कि आपका दिमाग अच्छी और बुरी आदतों में अंतर नहीं बता सकता, इसलिए यदि आपकी आदत बुरी है, यह वहाँ सही क्यूज और रिवार्ड्स की प्रतीक्षा करता हुआ, हमेशा घात लगाए रहता है।” आदतों के फंदों के बिना, दैनिक जीवन की जरा सी बात से घबरा कर, हमारे दिमाग बंद हो जाएँगे।  
 
ललकता दिमाग: नई आदतें कैसे बनाएँ
1900 के शतक के आरंभ में एक दिन, क्लाउड सी हॉप्किंस नामक एक प्रख्यात अमेरिकन एक्जेक्यूटिव के पास कोई पुराना मित्र एक बिजनेस आइडिया लेकर आया। उस मित्र ने बताया कि उसने एक अद्भुत प्रोडक्ट का आविष्कार किया था, और पूरी तरह से आश्वस्त था कि वह बहुत चलेगा। यह एक मिंटी, झागदार मिश्रण एक टूथपेस्ट था जिसका नाम उसने “पेप्सोडेंट” रखा था। उसने कहा कि यह उद्यम, बहुत बडा होने वाला था। केवल यदि, हॉपकिंस एक राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार कैंपेन डिजाइन करने में सहायता करने के लिए राजी हो जाए। उस समय, हॉप्किंस एक तेजी से विकसित होते उद्योग का कर्णधार था, जिसका केवल कुछ दशक पहले कोई अस्तित्व ही नहीं था : विज्ञापन। उसने पहले अज्ञात रह चुके दर्जनों प्रोडक्ट्स, जैसे –– क्वेकर ओट्स, गुडइयर टायर्स, बिसेल कार्पेट स्वीपर, वैन कैम्प्स पोर्क ऐंड बीन्स –– को गृहस्थियों में अविरल प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं में बदल दिया था। और इस प्रौसेस में, उसने खुद को इतना धनी बना लिया था कि उसकी आत्मकथा, माइ लाइफ इन ऐडवर्टाइजिंग, जिसमें अधिक पैसे खर्च करने में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन करने में कई चैप्टर समर्पित किए गए थे, सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक बन गई थी।
 
हॉप्किंस के नियम  हॉप्किंस के द्वारा स्वयं निकाले गए उन नियमों की सीरिज के लिए प्रसिद्ध है जो यह समझाते हैं कि ग्राहकों में नई आदतें कैसे डाली जाएँ। यह नियम उद्योगों को ट्रांसफॉर्म कर देते थे और अंत में मार्केटिंग करने वालों, शिक्षा सुधारकों, पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल्स, राजनीतिकों तथा CEOs के बीच पारंपरिक ज्ञान बन गए थे। जब उसका मित्र हॉप्किंस के पास पेप्सोडेंट लेकर आया तो उस विज्ञापन वाले व्यक्ति ने केवल हल्की रुचि दिखाई की थी। इसमें कोई रहस्य नहीं था कि अमेरिकनों के दाँतों का स्वास्थ्य भयानक गिरावट पर था। चूंकि जैसे-जैसे यह देश अधिक धनवान होता गया, लोगों ने मीठे तथा प्रोसेस किए गए भोजनों को बड़ी मात्रा में खरीदना शुरू कर दिया था। जब सरकार ने प्रथम विश्व युद्ध के लिए लोगों की सेना में भर्ती शुरू की, तब इतने रंगरूटों के दाँत सड़े हुए थे कि अधिकारियों ने कहा दाँतों की खराब हाइजिन, सुरक्षा पर खतरा थी। फिर भी, जैसे कि हॉप्किंस जानता था, टूथपेस्ट बेचना पैसों के मामले में आत्महत्या थी। समस्या यह थी कि शायद ही कोई टूथपेस्ट खरीदता था, क्योंकि इस देश की दाँतों का समस्या के बावजूद, बिरले ही कोई दाँत ब्रश करता था। “मैं अंत में कैंपेन का उत्तरदायित्व लेने के लिए राजी हो गया यदि वह स्टॉक के एक ब्लौक पर मुझे छः महीनों का ऑप्शन दे,”
 
हॉप्किंस ने लिखा था। वह मित्र राजी हो गया। पैसों के मामले में यह हॉप्किंस के जीवन का सबसे समझदारी भरा निर्णय साबित होने वाला था। साझेदारी के पाँच वर्षों के अंदर, हॉप्किंस ने पेप्सोडेंट को पृथ्वी पर सबसे अधिक जाने-माने प्रोडक्ट्स में से एक बना दिया था, और इस प्रौसेस में, टूथब्रश करने की आदत बनाने में सहायता कर डाली, जो पूरे अमेरिका में चौंका देने वाली स्पीड से फैल गया। पेप्सोडेंट के पहले कैंपेन के एक दशक बाद, मतदान सर्वे करने वालों ने पाया कि दाँतों को ब्रश करना आधी से अधिक अमरीकी जनसंख्या के लिए एक रिवाज बन गया था। हॉप्किंस ने दाँत ब्रश करने की क्रिया को एक दैनिक ऐक्टिविटी में जमाने में सहायता की थी।  बाद में हॉपकिंस ने गर्व के साथ कहा कि उसकी सफलता का रहस्य यह है कि उसने एक विशेष प्रकार के क्यू और रिवार्ड की खोज पा ली है जो किसी विशेष आदत के लिए इंधन का काम करता है। यह एक इतनी शक्तिशाली ऐल्केमी है कि आज भी वीडियो गेम्स डिजाइनरों, फुड कंपनियों, अस्पतालों और करोडों सेल्स-कर्मियों द्वारा संसार भर में इसके बेसिक सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है।  तब, आखिरकार हॉप्किंस ने किया क्या था?  उसने एक ललक की सृष्टि की थी। और जैसा कि प्रकट होता है, यही ललक आदत के फंदे को ताकत देती है। आदत को ताकत देने के लिए ललक की सृष्टि
पेप्सोडेंट बेचने के लिए, हॉप्किंस को एक ट्रिगर की आवश्यकता थी जो टूथपेस्ट के दैनंदिन उपयोग को जस्टिफाइ करता। वह डेंटल टेक्स्टबुक्स की एक थाक लेकर बैठ गया। उसने बाद में लिखा था कि “इसे पढ़ना मुझे नीरस लगा”। “परंतु किसी पुस्तक में मुझे दाँतों पर मयूसिन प्लैक्स का रेफरेंस मिला  जिसे मैंने बाद में ‘द फिल्म,’ नाम दिया। इसने मुझे एक आकर्षक आइडिया दिया। मैंने निश्चय किया कि उस धूमिल फिल्म से निपटने के लिए, इस टूथपेस्ट का विज्ञापन सुंदर बनाने वाले के रूप में किया जाए।” दाँत की फिल्म पर फोकस केंद्रित करते हुए, हॉप्किंस इस तथ्य की अनदेखी कर रहा था कि वही फिल्म लोगों के दाँतों को ढके रखती है और वह लोगों को परेशान करती नहीं लगती थी। टूथपेस्ट फिल्म को हटाने में सहायता करने के लिए कुछ भी नहीं करता था।
 
वास्तव में, उस समय के एक चोटी के डेंटल रिसर्चर ने कहा था कि सभी टूथपेस्ट –– विशेष रूप से पेप्सोडेंट –– बेकार हैं। पर इस बात ने हॉप्किंस को अपनी खोज से लाभ उठाने से नहीं रोका। उसने निर्णय किया कि यहाँ एक क्यू है जो एक आदत को ट्रिगर कर सकता है। शीघ्र ही, सभी नगर पेप्सोडेंट के विज्ञापनों से पट गए। इसमें मुस्कुराती हुई सुंदरियाँ दिखाई गई थीं और लिखा था, “नोटिस कीजिए, चारो ओर कितने सुंदर दाँत हैं।” करोड़ों व्यक्ति दाँतों को साफ करने के लिए एक नई पद्धति का उपयोग कर रहे हैं। कोई महिला अपने दाँतों पर गंदी फिल्म क्यों रहने देगी? पेप्सोडेंट इस फिल्म को हटाता है!” इन अपीलों की झलक यह थी कि वे एक क्यू –– दाँत के फिल्म पर निर्भर करते थे –– जो सबके लिए था और जिसकी अनदेखी करना असंभव था। प्रकट है, कि किसी को अपने दाँतों पर जीभ फिराने के लिए कहने पर संभव है कि वह अपने दाँतों पर जीभ फेरे, और यदि उसने फेरा तो उसके लिए उन पर फिल्म का अनुभव करना संभव है। हॉप्किंस को एक क्यू मिल गया जो सरल था, युगों से था, और ट्रिगर करने में इतना आसान था कि कोई भी विज्ञापन लोगों को सहज रूप से स्वीकार करने के लिए उकसाएगा।
 
इसके अलावा, जैसे कि हॉप्किंस ने कल्पना की थी, वह रिवार्ड इससे भी अधिक मोहने वाला था। आखिर अधिक सुंदर होना कौन नहीं चाहता? कौन नहीं चाहता कि उसकी मुस्कान और भी सुंदर हो? विशेष रूप से जब इसके लिए केवल जल्दी से पेप्सोडेंट से ब्रश कर लेना है? तीसरे सप्ताह में, मांगों का धमाका हो गया। पेप्सोडेंट के लिए इतने ऑर्डर आए कि कंपनी संभाल नहीं कर पाई। एक दशक के अंदर, पेप्सोडेंट संसार के सबसे अधिक बिकने वाले मालों में से एक था, और 30 वर्ष से अधिक के लिए अमेरिका का सबसे अधिक बिकने वाला टूथपेस्ट बना रहा। पेप्सोडेंट के प्रकट होने से पहले, केवल 7 प्रतिशत अमेरिकनों के दवा के बक्सों में टूथपेस्ट की एक ट्यूब हुआ करती थी। हॉप्किंस के विज्ञापन अभियान के देशव्यापी हो जाने के एक दशक बाद यह संख्या उछल कर 65 प्रतिशत हो गई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक, सेना ने अपने रंगरूटों के दाँतों के बारे में चिंताओं में कटौती कर दी, क्योंकि इतने सारे सैनिक रोजाना दाँतों को ब्रश कर रहे थे। 
कोई क्यू ढूँढ़िए, रिवार्ड्स डिफाइन कीजिए

हॉपाकिंस ने कहा था कि, उसकी कुंजी यही है कि उसने “सही मानव मनोविज्ञान सीखा था।” वह मनोविज्ञान दो बेसिक नियमों पर खड़ा था : पहला, कोई सरल और प्रत्यक्ष क्यू ढूँढ़िए। दूसरा, रिवार्डस को स्पष्ट रूप से डिफाइन कीजिए। हॉप्किंस का दावा था कि यदि आप इन दोनों तत्वों को सही कर लेते हैं तब यह एक जादू के समान होगा। पेप्सोडेंट को देखिए। उसने एक क्यू की पहचान की –– दाँत की फिल्म –– और एक रिवार्ड –– सुंदर दाँत –– जिसने करोड़ों को एक दैनिक रिवाज आरंभ करने के लिए अनुसरण किया था। आज भी, हॉप्किंस के नियम मार्केटिंग टेक्स्ट बुक्स के मुख्य भाग हैं तथा करोड़ों विज्ञापन कैंपेन्स की नीँव हैं। उस समय के टूथपेस्ट्स से अलग पेप्सोडेंट में साइट्रिक ऐसिड, उसके साथ-साथ मिंट तेल की खुराकें तथा केमिकल्स होते थे  पेप्सोडेंट के इन्भेंटर ने इन अवयवों का उपयोग टूथपेस्ट का स्वाद ताज़ा  बनाने के लिए किया था, परंतु उनका एक दूसरा अप्रत्याशित प्रभाव था। यह उत्तेजक हैं जो जीभ और मसूड़ों पर एक ठंडी, सिहरन के पैदा करते हैं।
 
जब पेप्सोडेंट ने बाजार में अपनी बढ़त बनाना शुरू किया तब प्रतियोगी कंपनियों के रिसर्चर यह समझने के लिए हाथापाई करने लगे कि ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने पता किया कि ग्राहक कहते थे कि यदि वे पेप्सोडेंट का उपयोग करना भूल जाते थे तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हो जाता था क्योंकि उन्हें अपने मुँह में होने वाले वह ठंडी, सिहरन याद आती थी। वे उस हल्की उत्तेजना  –– एक्सपेक्ट करते –– उसके लिए ललकते थे। यदि यह नहीं होती तो उन्हें लगता कि उनके मुँह साफ नहीं हुए हैं। क्लाउड हॉप्किंस सुंदर दाँत नहीं बेच रहा था, वह एक अहसास बेच रहा था। एक बार जब उस ठंडी सिहरन के लिए ललकते –– एक बार जब वे इसकी बराबरी सफाई से करते –– तब ब्रश करना एक आदत बन जाती थी। “कंज्यूमर्स को किसी प्रकार के संकेत की आवश्यकता होती है कि कोई प्रोडक्ट कार्यकारी है,” ट्रेसी सिनक्लेयर कहते हैं, जो ऑरल-बी और क्रेस्ट किड्स टूथपेस्ट के ब्रैंड मैनेजर थे। “हम टूथपेस्ट को किसी भी स्वाद का बना सकते हैं। सिहरन पैदा करने वाला टूथपेस्ट बेहतर काम नहीं करता। यह केवल लोगों को विश्वास दिलाता है कि यह अपना काम कर रहा है।”
 

कोई भी अपनी आदतों को बनाने के लिए बेसिक फॉर्मुला का प्रयोग कर सकता है। क्या आप अधिक कसरत करना चाहते हैं? नींद खुलते ही जिम चले जाने जैसा कोई क्यू चुन लीजिए, और प्रत्येक वर्क-आउट के बाद चापलूसी जैसा कोई रिवार्ड भी चुन लीजिए। तब उस चापलूसी या एंड्रोफिन के दबाव के बारे में सोचिए जिसका आप अनुभव करते हैं। अपने आपको उस रिवार्ड की प्रत्याशा करने की परमिशन दीजिए। अंत में वह ललक आपके लिए प्रतिदिन जिम जाना तथा इसे समझना आसान बना देगा कि कैसे क्रेविंग कोई नई आदत बनाना अधिक आसान कर देता है।  
आदत बदलने के लिए सुनहला नियम: ट्रांसफॉर्मेंशन क्यों होता है
टोनी डुंगी ने बक्कानियर्स के हेड कोच की नौकरी के लिए बहुत दिनों से प्रतीक्षा की थी। 17 साल तक वह एक ऐसिस्टैंट कोच के रूप में हाशिए पर चहलकदमी करता रहा, पहले यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा, तब पिट्सबर्ग स्टीलर्स, फिर कैनसास सिटी चीफ्स, और तब वापस मिनेसोटा में वाइकिंग्स में। पिछले दशक में उसे NFL टीमों के हेड कोच के पदों के लिए इंटरव्यू के लिए चार बार इन्वाइट किया गया था। इन सभी चार बारों में उसके इंटरव्यू अच्छे नहीं हुए थे। डुंगी की समस्या का एक हिस्सा उसकी कोचिंग फिलॉसफी थी। अपने इंटरव्यूज में वह धैर्य के साथ समझाता कि जीतने की कुंजी खिलाढ़ियों का आदतें बदलने में है। वह किसी खेल के दौरान खिलाड़ियों द्वारा इतने अधिक निर्णय लिया जाना बंद कराना चाहता था। उसने कहा कि वह चाहता था कि वे आदतन अपने सहज रिऐक्शन्स दें। यदि वह सही आदतें डाल सकता तब उस की टीम जीत सकती थी। इससे सही आदतें बन सकती थीं, उसकी टीम जीत जाती। बस। 
 

“चैंपियन्स असाधारण चीजें नहीं करते,” डुंगी समझाता। “वे साधारण चीजें करते हैं, परंतु वे उन्हें बिना सोचें करते हैं, इतनी तेजी से कि दूसरी टीमें रिऐक्ट नहीं कर पातीं। वे उन आदतों का अनुसरण करते हैं जिन्हें उन्होंने सीखा है।” मालिक पूछते कि तुम उनमें वे नई कैसे डालोगे?
 

अरे, नहीं, वह नई आदतें डलवाने नहीं जा रहा था। डुंगी खिलाड़ियों की पुरानी आदतें बदलने जा रहा था। और पुराना आदतों को बदलने का रहस्य उन चीजों का उपयोग करना है जो खिलाड़ियों के दिमागों में पहले से ही हैं। आदतें तीन स्टेप्स का फंदा हैं –– क्यू, रूटीन, और रिवार्ड –– परंतु डुंगी केवल बीच के स्टेप पर हमला करना चाहता था। वह अपने अनुभव से जानता था कि यदि शुरू में और अंत में कुछ जाना-पहचाना हो तो किसी को नया आचरण अपनाने के लिए समझाना अधिक आसान होता है। उसकी कोचिंग रणनीति में एक सिद्धांत में, आदत बदलने का एक सुनहला नियम छिपा हुआ था जिसे अनगिनत स्टडीज ने बदलाव करने वाले सबसे शक्तिशाली औजारों में से एक के रूप में दिखाया है। डुंगी यह मानता था कि आप वास्तव में खराब आदतों को कभी भी समाप्त नहीं कर सकते। बल्कि, किसी आदत को बदलने के लिए आपको पुराना क्यू रखना चाहिए और पुराने रिवार्ड की डेलिवरी करनी चाहिए, परंतु एक नया रूटीन डालना चाहिए। 
 

यही नियम है : यदि आप उसी क्यू का उपयोग करते हैं और वही रिवार्ड देते हैं, तब रूटीन में खिसकाव करते हुए आदत बदल सकते हैं। यदि वही पुराने क्यू और रिवार्ड बने रहें तब लगभग किसी भी आचरण को ट्रांसफॉर्म किया जा सकता है। चार बार डुंगी ने टीम मालिकों को अपनी आदत-आधारित फिलॉसफी समझाई। चारों बार उन्होंने पोलाइटली सुना, उसे समय देने के लिए धन्यवाद दिया और किसी दूसरे को नौकरी पर रख लिया। तब, 1996 में, उसे दुःखी बकानियर्स ने बुला भेजा। डुंगी हवाई जहाज से टाम्पा बे गया, और एक बार फिर, उने अपनी योजनाओं का खुलासा किया कि वे कैसे जीत हासिल कर सकते थे।
 
अंतिम इंटरव्यू के अगले दिन उन्होंने नौकरी दे दी। डुंगी की प्रणाली ने बक्स को अंत में, लीग की सबसे अधिक जीतने वाली टीम में बदल डाला। वह NFL के इतिहास में, लगातार 10 वर्षों में प्ले-ऑफ्स पहुँचने वाला अकेला कोच, सुपरबोल जीतने वाला अकेला अफ्रीकी-अमेरिकन और प्रोफेशनल ऐथ्लेटिक्स में सबसे रेस्पेक्टेड लोगों में से एक बन गया। उसकी कोचिंग तकनीकें पूरे लीग में और सभी खेलों में फैल गईं। उसका दृष्टिकोण किसी के भी जीवन में आदतों के पुनर्निर्माण करने के उपायों पर प्रकाश डालने में सहायता करेगा। दुर्भाग्यवश, प्रत्येक व्यक्ति के लिए निर्धारित स्टेप्स के सेट के कार्यकारी होने की गारंटी नहीं है। हम जानते हैं कि किसी भी आदत को जड़ से नहीं उखाड़ा  जा सकता  –– इसके बदले, इसे बदल डालना चाहिए। और हम जानते हैं कि जब आदत बदलने के सुनहले नियम का प्रयोग किया जाता है तब आदतें अत्यंत लचीली हो जाती हैं। यदि हम वही क्यू और वही रिवार्ड बनाए रखें, तब एक नया रूटीन डाला जा सकता है। परंतु यह काफी नहीं है। किसी आदत को बदले रखने के लिए, लोगों में यह विश्वास होना आवश्यक है कि बदलाव संभव है।
 
और अधिक अक्सर, यह विश्वास किसी ग्रुप की सहायता से उपजता है। यदि आप सिगरेट पीना छोड़ना चाहते हैं, तब आप एक अलग रूटीन सोच निकालिए जो सिगरेटों से भरे जाने वाले क्रेविंग्स को संतुष्ट करेगा। तब सिगरेट छोड़ने वालों से बना हुआ एक सपोर्ट ग्रुप या कोई समुदाय ढूँढ़ निकालिए जो यह विश्वास करने में आपकी सहायता करे कि आप निकोटीन से दूर रह सकते हैं, और जब आप लड़खड़ा रहे हों तब उस ग्रुप का उपयोग कीजिए। यदि आप वजन कम करना चाहते हैं, तब यह निर्धारित करने के लिए आप अपनी आदतों की स्टडी कीजिए कि आप हर दिन आप वास्तव में स्नैक्स लेने के लिए अपनी मेज क्यों छोड़ते हैं और किसी को साथ टहलने के लिए लेते हैं, कैफेटारिया के बदले अपनी मेज पर गॉसिप करने के लिए, कोई ग्रुप जो साथ मिल कर वजन कम करने के लक्ष्यों को साथ मिल कर पता लगाता है या किसी ऐसे व्यक्ति को पा जाते हैं जो पास में चिप्स के बदले सेवों का स्टॉक रखता है। सबूत साफ है : यदि आप कोई आदत बदलना चाहते हैं, तब आपको एक अल्टरनेटिव रूटीन ढूँढ़ निकालना चाहिए, और आपकी सफलता के संयोग नाटकीय रूप से बढ़ जाते हैं यदि आप ग्रुप के अंश के रूप में बदलने के लिए कमिटेड होते हैं। विश्वास बहुत ही जरूरी है, और यह सामुदायिक अनुभव से पैदा होता है, हालांकि वह समुदाय केवल दो व्यक्तियों से बना है।  
 मुख्य आदतें: किन आदतों का महत्व सबसे अधिक है
1987 के अक्तूबर के एक तूफानी दिन, वाल स्ट्रीट के मशहूर निवेशकों और स्टॉक ऐनैलिस्टों का एक जत्था मैनहटन के एक आलीशान होटल के बॉलरूम में इकट्ठा हुआ। वे ऐल्कोआ के नाम से विख्यात –– ऐलुमिनम कंपनी ऑफ अमेरिका के CEO से मिलने वहाँ आए थे  –– यह एक कॉर्पोरेशन है जिसने लगभग आधी सदी से, हर्शी किसेज लपेटने वाले फ्वायल, कोका-कोला के कैन्स के धातु से लेकर सैटेलाइट्स जोड़ कर रखने वाले बोल्ट्स तक, सभी चीजें बनाई थीं। ऐल्कोआ के मैनेजमेंट ने मूर्खतापूर्वक, नए उत्पादों की लाइन में विस्तार करने की कोशिश में कई गलत कदम ले लिए थे, जब प्रतियोगियों ने उनके ग्राहक और मुनाफे हथिया लिए थे। जब ऐल्कोआ के बोर्ड ने घोषणा की कि एक नए नेतृत्व का समय आ गया है तब चेहरों पर राहत साफ दिखाई देने लगा। परंतु यह राहत बेचैनी में बदल गई जब बोर्ड ने अपने चुनाव की घोषणा की : नया CEO पॉल ओनील नामक पहले एक सरकारी नौकरशाह हुआ करता था।
 
वाल स्ट्रीट में कइयों ने उसके बारे में कभी सुना भी नहीं था। जब ऐल्कोआ की इस स्वागत सभा में बड़े निवेशकों ने निमंत्रित किये जाने की मांग की। “यदि आप समझना चाहते हैं कि ऐल्कोआ कैसा कर रहा है, तब आपको हमारे कारखाने में सुरक्षा आंकड़ों पर देखना पड़ेगा। यदि हम अपनी जख्म दरों को कम करते हैं यब यह चियरलीडिंग या उन बकवासों के कारण नहीं होगा जो हम दूसरे CEOs से कभी-कभी सुनते हैं।” ओनील ने कहा। “यह इसलिए होगा कि कि इस कंपनी के व्यक्तियों ने किसी महत्वपूर्ण चीज का अंश बनने के लिए राजी हुए हैं। उन्होंने एक्सेलेंस की आदत डालने में अपने आप को झोंक दिया है। सुरक्षा इसका इंडिकेटर होगी कि हमने अपने पूरे इंस्टिच्यूशन में आदतों को बदलने में प्रगति कर रहे हैं। इसी तरह हमें आंका जाना चाहिए।” प्रेजेंटेशन के समाप्त होते ही उस कमरे में निवेशकों के बीच निकलने के लिए एक भगदड़ सी मच गई। एक दौड़ता हुआ लॉबी में गया और पे फोन ढूँढ़ कर 20 सबसे बड़े ग्राहकों को फोन किया
 

“मैंने कहा, ‘बोर्ड ने एक पागल हिप्पी को चार्ज सौंप कर रख दिया है और वह कंपनी को मार डालेगा,’” निवेशक ने कहा। “इससे पहले कि रूम का हर व्यक्ति अपने ग्राहकों को कॉल करना शुरू करे और उनसे यही चीज कहे, मैंने उन्हे अपने स्टॉक तुरंत बेच डालने का आदेश दे दिया है। “यह असल में सबसे बुरी सलाह थी जिसे मैंने अपने कैरियर में दिया है।” ओनील के भाषण के एक वर्ष के अंदर ऐल्कोआ के मुनाफे रिकॉर्ड पार करने लगे। जब ओनील 2000 में रिटायर हुआ, तब कंपनी की वार्षिक निवल आय उस आय की पाँचगुणा हो गई थी जो उसके आने से पहले थी, और इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन $27 बिलियन से बढ़ गया था। जिस दिन ओनील को नौकरी दी गई थी, यदि उस दिन किसी ने ऐल्कोआ में एक मिलियन डॉलर्स का निवेश किया होता तो जब तक कंपनी उसके नेतृत्व में था, उस व्यक्ति ने डिविडेंड्स में दूसरा मिलियन कमा लिया होता, और उसके कंपनी छोड़ने तक स्टॉक का मूल्य पाँच-गुणा हो गया होता। ओनील ने कैसे सबसे बड़ी, भारी उबाऊ, और संभावित रूप से सबसे खतरनाक कंपनियों में से एक के मुनाफे की मशीन तथा सुरक्षा के गढ़ में बदल दिया था? एक आदत पर हमला करते हुए और संगठन में बदलावों के बुलबुले निकलते हुए देखता रहा।  
 
मुख्य आदतें
ओनील का मानना था कि कुछ आदतों में, संगठन में आगे बढ़ते हुए अन्य आदतों को बदलते हुए चेन रिऐक्शन शुरू करने की क्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, कुछ आदतें व्यापार और जीवन को फिर से बनाने में दूसरी आदतों से अधिक महत्व रखती है। यह “मुख्य आदतें हैं,” और वे, लोग कैसे काम करते हैं, खेलते है, जीते हैं, खर्च करते हैं और संवाद करते हैं इन सब को प्रभावित करती हैं। मुख्य आदतें एक प्रौसेस शुरू करती हैं, जो समय के साथ, सभी चीजों को ट्रांसफॉर्म कर देती हैं। मुख्य आदतें कहती हैं कि सफलता प्रत्येक चीज सही किए जाने पर निर्भर नहीं करतीं, परंतु इसके बदले कुछ मुख्य प्रायोरिटीज़ की  पहचान करने और उन शक्तिशाली लिवरों को डिजाइन करने पर निर्भर करती है। अधिक महत्वपूर्ण आदतें वे आदतें हैं जो, जब वे दूसरे पैटर्न्स को बदलती हैं, हटाती हैं और फिर से बनाती हैं।  रिसर्चर्स ने लगभग प्रत्येक संगठन या कंपनी में संस्थानीय आदतें पाई हैं, जिनका उन्होंने निरीक्षण किया है। 
 

“व्यक्तियों के पास आदतें होती हैं; समूहों के पास रूटीनें होती हैं,” ज्यौफ्री हॉजसन ने लिखा, जिसने अपना पूरा कैरियर संगठनात्मक पैटर्न्स का निरीक्षण करने में बिताया था। ओनील को इस प्रकार की आदतें खतरनाक लगती थीं। “हम बेसिक रूप से निर्णय करने को एक ऐसे प्रौसेस को सौंप देते करते थे जो वास्तव में बिना सोचे  हो जाती थी।” उस समय, ऐल्कोआ संघर्ष कर रहा था। आलोचक कहते थे कि कंपनी के कर्मी काफी   कुशल नहीं थे और इसके प्रोडक्ट्स की क्वालिटी खराब थी। परंतु ओनील ने अपनी सबसे बड़ी प्रायोरिटीज़ के रूप में, अपनी सूची मे सबसे ऊपर “क्वालिटी” या “कार्यकुशलता” नहीं लिखा था। ऐल्कोआ जितनी बड़ी और पुरानी कंपनी में, आप कोई स्विच पलटते हुए प्रत्येक कर्मी से कठोर से कठोर परिश्रम और अधिक प्रोडक्शन एक्सपेक्ट नहीं कर सकते। भूतपूर्व CEO ने सुधार मैंडेट देने की कोशिश की थी, और 15,000 कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे।
 
यह इतना खराब हो गया कि वे डमियों को पार्किंग लॉट्स में ले जाते उन्हें मैनेजरों के समान कपड़े पहनाते, और उन्हें पुतलों में जला देते। “ऐल्कोआ कोई खुशहाल परिवार नहीं था,” उस समय काम करने वाले एक व्यक्ति ने कहा। “यह अधिकतर उस मैंसन परिवार की तरह था, परंतु इसके साथ पिघला धातु जुड़ा हुआ था।” ओनील ने सोचा कि उसकी टॉप प्रायोरिटी कुछ ऐसी होनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति –– यूनियन और एक्जेक्यूटिव्स –– सहमत हों कि यह महत्वपूर्ण थी। उसे एक फोकस की आवश्यकता थी, जो लोगों को साथ ला सके जो लोग कैसे काम करते और संवाद करते थे, इन्हें बदलने के लिए उसे एक लिवरेज दे। 
 लिवरेज के लिए फोकस चुनना
“मैं बुनियादी चीजों पर गया,” ओनील ने कहा। “हर व्यक्ति इसके योग्य है कि वह काम उतना ही सुरक्षित रूप में छोड़े जितना वह आया था, ठीक है? आपको भयभीत नहीं होना चाहिए अपने परिवार को खिलाना आपको मार डालेगा। यही वह चीज थी जिस पर मैंने फोकस करने का निर्णय लिया, प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा आदत को बदल डालना।” अपनी सूची के शीर्ष पर ओनील ने लिखा “सुरक्षा” तथा एक दुःसाहसी टार्गेट रखा: जीरो जख्म। जीरो फैक्टरी नही। जीरो जख्म, बस। यही उसकी कमिटमेंट रहेगी, चाहे इस पर जितना भी खर्च हो, कोई बात नहीं। दृष्टिकोण की दमक यह थी कि वास्तव में ओनील के साथ कर्मी सुरक्षा के बारे में बहस नहीं करना चाहता था। यूनियने बेहतर सुरक्षा नियमो के लिए वर्षों से संघर्ष कर रही थीं। मैनेजर भी इसके बारे में बहस नहीं करना चाहते।
 
जख्मों का अर्थ था प्रोडक्टिविटी खोना तथा नीची मनोदशा। जिस बात को अधिक लोग समझ नहीं पाए, फिर भी वह जीरो जख्म पाने के लिए ओनील की योजना थी जिसने ऐल्कोआ के इतिहास में सबसे मौलिक पुनर्गठन को में आवश्यक बना दिया। कर्मियों की सुरक्षा करने के लिए ऐल्कोआ को पृथ्वी पर सबसे सुव्यवस्थित ऐल्यूमिनम कंपनी बनना था। इसके कारण सुरक्षा योजना को आदत के फंदे पर मॉडल किया गया था। उसने एक सरल क्यू की पहचान कर ली : किसी कर्मचारी का जख्म।  उसने एक सहज रूटीन जारी किया : किसी भी समय जब कोई जख्मी होता, यूनिट प्रेसिडेंट 24 घंटे के अंदर ओनील के पास रिपोर्ट करना पड़ता और यह सुनिश्चित करने के लिए एक योजना प्रस्तुत करनी पड़ती कि यह जख्म फिर कभी नहीं होगा। और इसमें एक प्राइज था : प्रमोशन केवल उन्हीं व्यक्तियों को दी जाती जो इस सिस्टम को अपना लेते थे। जैसे ही ऐल्कोआ के सुरक्षा पैटर्न बदले, कंपनी के अन्य पहलू तथा वे नियम भी जिनका विरोध करते हुए यूनियनों ने दशकों बिताए थे। जैसे व्यक्तिगत कर्मियों की प्रोडक्टिविटी का माप किया जाना, जिन्हें अचानक अपना लिया गया, क्योंकि ऐसे माप हरेक व्यक्ति को यह समझने में सहायता करते थे कि मैनुफैक्चरिंग सिस्टम प्रणाली का कौन सा भाग काम नहीं कर रहा था, और सुरक्षा-संकट पैदा कर रहा था। वे नीतियाँ जिनका मैनेजरों ने चिरकाल से विरोध किया था –– जैसे जब गति अत्यधिक बढ़ जाए तब कर्मियों को प्रोडक्शन बंद करने के लिए ऑटोनॉमी दिया जाना –– अब उनका स्वागत किया जाने लगा, क्योंकि इससे पहले कि वे हो जाएँ जख्मों को रोकने के लिए यही सबसे बढ़िया उपाय था। 
 

ओनील ने कभी भी यह वादा नहीं किया था कि कर्मियों की सुरक्षा पर उसका फोकस ऐल्कोआ के मुनाफे बढ़ाएगा। फिर भी, जैसे-जैसे संगठन में नई रूटीने चलने लगीं, व्यय कम हो गए, क्वालिटी ऊँची हो गई और प्रोडक्शन आकाश छूने लगा। यदि पिधलते धातु का छलकना कर्मियों को चोटिल करता था, तब उसे ढालने के सिस्टम को रीडिजाइन किया जाता, जिससे जख्म कम होने लगे। इससे पैसा भी बचा, क्योंकि छलकाव में ऐल्कोआ के कच्चे माल का कम नुक्सान हुआ। यदि कोई मशीन हमेशा खराब होती रहती थी, तब उसे बदल दिया गया, जिसका अर्थ हुआ कि कर्मचारियों के हाथों पर पुर्जों के टूट कर गिरने और जख्मी करने का खतरा कम हो गया। इसका अर्थ यह भी हुआ की प्रोडक्ट्स की क्वालिटी बढ़ गई, जैसा कि ऐल्कोआ को पता चला कि उपकरणों का  ठीक से काम नहीं करना घटिया ऐलुमिनम का मुख्य कारण था। 
 
शुरुआती बदलाव चेन रिऐक्शन्स शुरू करते हैं
रिसर्चर्स को दर्जनों अन्य व्यवस्थाओं में भी इसी तरह की डायनैमिक्स का पता लगा है, जिसमों व्यक्तिगत जीवन भी सम्मिलित है। स्टडीज ने दर्ज किया है कि जिन परिवारों में आदतन डिनर एक साथ बैठकर किया जाता है उनमें जो बच्चे पलते हैं, लगता है कि उनका होमवर्क कौशल अधिक होता है, उनके ग्रेड अच्छे आते हैं, उनमें भावनात्मक नियंत्रण अधिक होता है तथा आत्मविश्वास अधिक होता है। हर सुबह अपना बिस्तर सहेजना बेहतर प्रोडक्टिविटी, वेल-बीइंग की बेहतर भावना, तथा बजट से लगे रहने की बेहतर कुशलताओं के साथ संबंधित है। ऐसा नहीं है कि पारिवारिक भोजन और स्वच्छ बिस्तर बेहतर ग्रेड्स तथा कम फिजूलखर्ची का कारण है। परंतु किसी न किसी तरह यह शुरुआती बदलाव चेन रिऐक्शंस की शुरुआत कर देते हैं जो दूसरी अच्छी आदतों की जड़ जमाने में सहायता करती हैं। यदि आप आप मुख्य आदतों को बदलने या आदतें पैदा करने पर फोकस करते हैं, तप आप व्यापक बदलाव ला सकते हैं। वे नए ढांचे बनाते हुए, दूसरी आदतों को फलने-फूलने में सहायता करती और वे उन संस्कृतियों को स्थापित करती हैं जहाँ बदलाव संक्रामक हो जाता है। 
 
स्वतंत्र इच्छा की न्यूरॉलजी: क्या हम अपनी आदतों के लिए उत्तरदायी हैं?
आदतें उतनी सरल नहीं होतीं जितनी वे दिखती हैं। आदतें, यदि हमारे दिमागों में जड़ें जमा भी लें, फिर भी वे विधाता का विधान नहीं हैं। यदि एक बार हम जान जाएँ कि कैसे चुनें, तब हम अपनी आदतें चुन भी सकते हैं। हम आदतों के बारे में जो भी जानते हैं, भूलने वाले रोगियों का अध्ययन करने वाले न्यूरॉलजिस्ट्स से लेकर कंपनियों को फिर से बनाने वाले संगठन विशेषज्ञ तक, वह यही है कि यदि आप जान जाएँ कि वे कैसे कार्य करती हैं तब इनमें से किसी को भी बदला जा सकता है। 
 

सैकड़ों आदतें हमारे दिनों को प्रभावित करती हैं –– हम सुबह कपड़े कैसे पहनते हैं, अपने बच्चों से बातें करते हैं और रात को सोते हैं, इनमें हमारा मार्गदर्शन करती हैं। वे इसे भी प्रभावित करती हैं कि हम लंच में क्या खाते हैं, व्यापार कैसे करते हैं और काम के बाद हम कसरत करते हैं या बियर पीते हैं। इनमें से प्रत्येक का एक अलग क्यू है और प्रत्येक एक यूनीक प्राइज देता है। कुछ सरल हैं और दूसरी जटिल हैं, जो भावनात्मक ट्रिगर्स से लेती हैं तथा गूढ़ न्यूरोकेमिकल प्राइज देती हैं। परंतु हरेक आदत, चाहे वह कितनी भी जटिल क्यों न हो, लचीली है। सबसे अधिक दुष्क्रियाशील कंपनियाँ अपने आपको ट्रांसफॉर्म कर सकती हैं। फिर भी किसी आदत को सुधारने के लिए, आपको इसे बदलने का निश्चय करना पड़ेगा। आपको जानबूझ कर क्यूज और रिवार्ड्स पहचानने का कठिन कार्य स्वीकार करना पड़ेगा जो आदतों की रूटीन को चालित करती हैं तथा अल्टर्नेटिव्स ढूँढ़ने पड़ेंगे।
 
आपको जानना चाहिए कि आप में नियंत्रण है और इसका उपयोग करने के लिए आपको पूरी तरह से आत्म-सचेतन होना पड़ेगा। एक बार जब आप समझ लेते हैं कि आदतें बदल सकती हे, तब उन्हें फिर से बनाने के लिए –– आपको स्वतंत्रता है –– और उत्तरदायित्व है। एक बार आप समझ लें कि आदतों को फिर से बनाया जा सकता है, तब आदतों की शक्ति को समझना अधिक आसान हो जाता है। यदि आपको विश्वास है कि आप बदल सकते हैं –– यदि आप इसे आदत बना सकते हैं –– तब बदलाव वास्तविकता बन जाता है। यह आदत की वास्तविक शक्ति है: एक अंतर्दृष्टि कि आपकी आदतें वह चीज हैं जिन्हें आप चुन सकते हैं। एक बार जब यह चुनाव हो जाता है और सहज बन जाता है, यह केवल यथार्थ ही नहीं है, बल्कि  यह लाजमी लगने लगता है।

 

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